दिमाग के इशारे पर चलेगा रोबोटिक हाथ
State 6:00 AM
पीटर्सबर्ग विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का कहना है कि उन्होंने एक ऐसा रोबोटिक अंग बना पाने में कामयाबी हासिल कर ली है जो कि दिमाग से नियंत्रित होने वाला अब तक का सबसे सफल रोबोटिक अंग है।
लैंसेट पत्रिका में छपे लेख के मुताबिक इस टीम में शामिल न्यूरोलॉजिस्ट यानि तंत्रिका तंत्र विशेषज्ञ का कहना है कि दिमाग के इशारे पर चलने वाले रोबोटिक अंग बना पाना एक महत्वपूर्ण सफलता है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि इस तकनीक के इस्तेमाल से लंबे समय से लकवे से पीड़ित लोग दिमाग के प्राकृतिक संकेतों के माध्यम से अपने रोबॉटिक अंगों को चला पाएंगे और अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी के काम कर पाएंगे।
शोधकर्ता लंबे समय से दिमाग से नियंत्रित कए जा सकने वाले एक माध्यम की तलाश कर रहे थे, जिसमें मरीज़ों के दिमाग में उपकरण लगाकर गति से जुडे दिमाग के संकेतों को पकड़ा जा सकना शामिल था। इस संकेतों को कंप्यूटर कोड में बदला जाता है जो रोबोटिक अंग को हिलाने-डुलाने के निर्देश देते हैं।
ये नया तरीका मुख्यत दिमाग के संकेतों के जल्दी और अच्छे से कोड में बदल देता है। पीटर्सबर्ग विश्वविद्यालय में न्यूरोलॉजी प्रमुख और प्रोफेसर एंड्रयू शिवाट्स कहते हैं कि सबसे बड़ी चुनौती ये रही है कि कैसे दिमाग के संकेतों को उन कंप्यूटर कोड में बदला जाए जो कि सटीक और भरोसेमंद तरीके से रोबोटिक हाथ को चला सकें।
प्रोफेसर एंड्रयू कहते हैं कि दिमाग से चलने वाले रोबोटिक अंग मुख्यत एल्गोरिथमिक कोड के आधार पर काम करते हैं जोकि दिमाग से मिलने वाले संकेतो और कंप्युटर के बीच के संकेतों की गणणा है। डॉक्टर एंड्रयू कहते हैं कि हमने इस बार बिलकुल हटकर तकनीक अपनाई है।
हमने ऐसे कंप्युटर एल्गोरिथम का इस्तेमाल किया है जो दिमाग के संकेतों की नकल करता है। नतीजतन रोबोटिक अंग ज्यादा सटीक तरीके और स्वाभाविक अंदाज़ में काम करते हैं।
पीट्सबर्ग विश्वविद्यालय की टीम ने लकवे से पीड़ित एक 52 साल की महिला पर इसका इस्तेमाल किया। लकवे से पीड़ित होने की वजह से वो महिला गर्दन से नीचे अपने अंगों पर नियंत्रण खो चुकी थी। ऑपरेशन के द्वारा उन्हें रोबोटिक अंग दिया गया, इसके बाद उनकी 14 हफ्ते की ट्रेनिंग शुरु हुई।
दूसरे दिन ही वो महिला अपने दिमाग के इशारे पर अपने रोबोटिक अंगो को हिला सकती थी। इस ट्रेनिंग में किसी चीज को पकड़ने से लेकर गेंद उछालने तक की गतिविधियां शामिल थी। इस दौरान उनकी सफलता 91।6 प्रतिशत रही जबकि शुरुआत से अंत तक उनके द्वारा की गई गतिविधियों के समय में 30 सेकेंड का सुधार हुआ।
शोधकर्ताओं का कहना है कि वो इसकी सफलता को लेकर आश्वस्त हैं, क्योंकि उन्होंने कडे़ परीक्षण किए हैं ताकि ये ना हो कि ये बदलाव सिर्फ एक तुक्का साबित हों। शोधकर्ताओं का कहना है कि उनका अगला कदम होगा कि वो इस तरह के रोबोटिक अंगों में सतह की गर्मी और चिकनेपन जैसे अहसासों को पहचाने वाले सेंसर लगा सके।
साथ ही कोशिश की जा रही हैं कि इस तरह के अंग तारों से दिमाग से ना जुडे हो बल्कि वाईफाई कनेक्शन से जुडे हों।
लैंसेट पत्रिका में छपे लेख के मुताबिक इस टीम में शामिल न्यूरोलॉजिस्ट यानि तंत्रिका तंत्र विशेषज्ञ का कहना है कि दिमाग के इशारे पर चलने वाले रोबोटिक अंग बना पाना एक महत्वपूर्ण सफलता है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि इस तकनीक के इस्तेमाल से लंबे समय से लकवे से पीड़ित लोग दिमाग के प्राकृतिक संकेतों के माध्यम से अपने रोबॉटिक अंगों को चला पाएंगे और अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी के काम कर पाएंगे।
शोधकर्ता लंबे समय से दिमाग से नियंत्रित कए जा सकने वाले एक माध्यम की तलाश कर रहे थे, जिसमें मरीज़ों के दिमाग में उपकरण लगाकर गति से जुडे दिमाग के संकेतों को पकड़ा जा सकना शामिल था। इस संकेतों को कंप्यूटर कोड में बदला जाता है जो रोबोटिक अंग को हिलाने-डुलाने के निर्देश देते हैं।
ये नया तरीका मुख्यत दिमाग के संकेतों के जल्दी और अच्छे से कोड में बदल देता है। पीटर्सबर्ग विश्वविद्यालय में न्यूरोलॉजी प्रमुख और प्रोफेसर एंड्रयू शिवाट्स कहते हैं कि सबसे बड़ी चुनौती ये रही है कि कैसे दिमाग के संकेतों को उन कंप्यूटर कोड में बदला जाए जो कि सटीक और भरोसेमंद तरीके से रोबोटिक हाथ को चला सकें।
प्रोफेसर एंड्रयू कहते हैं कि दिमाग से चलने वाले रोबोटिक अंग मुख्यत एल्गोरिथमिक कोड के आधार पर काम करते हैं जोकि दिमाग से मिलने वाले संकेतो और कंप्युटर के बीच के संकेतों की गणणा है। डॉक्टर एंड्रयू कहते हैं कि हमने इस बार बिलकुल हटकर तकनीक अपनाई है।
हमने ऐसे कंप्युटर एल्गोरिथम का इस्तेमाल किया है जो दिमाग के संकेतों की नकल करता है। नतीजतन रोबोटिक अंग ज्यादा सटीक तरीके और स्वाभाविक अंदाज़ में काम करते हैं।
पीट्सबर्ग विश्वविद्यालय की टीम ने लकवे से पीड़ित एक 52 साल की महिला पर इसका इस्तेमाल किया। लकवे से पीड़ित होने की वजह से वो महिला गर्दन से नीचे अपने अंगों पर नियंत्रण खो चुकी थी। ऑपरेशन के द्वारा उन्हें रोबोटिक अंग दिया गया, इसके बाद उनकी 14 हफ्ते की ट्रेनिंग शुरु हुई।
दूसरे दिन ही वो महिला अपने दिमाग के इशारे पर अपने रोबोटिक अंगो को हिला सकती थी। इस ट्रेनिंग में किसी चीज को पकड़ने से लेकर गेंद उछालने तक की गतिविधियां शामिल थी। इस दौरान उनकी सफलता 91।6 प्रतिशत रही जबकि शुरुआत से अंत तक उनके द्वारा की गई गतिविधियों के समय में 30 सेकेंड का सुधार हुआ।
शोधकर्ताओं का कहना है कि वो इसकी सफलता को लेकर आश्वस्त हैं, क्योंकि उन्होंने कडे़ परीक्षण किए हैं ताकि ये ना हो कि ये बदलाव सिर्फ एक तुक्का साबित हों। शोधकर्ताओं का कहना है कि उनका अगला कदम होगा कि वो इस तरह के रोबोटिक अंगों में सतह की गर्मी और चिकनेपन जैसे अहसासों को पहचाने वाले सेंसर लगा सके।
साथ ही कोशिश की जा रही हैं कि इस तरह के अंग तारों से दिमाग से ना जुडे हो बल्कि वाईफाई कनेक्शन से जुडे हों।