सांप्रदायिकता इतिहासकारों की देन


 अलीगढ़ : भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष जस्टिस मार्कंडेय काटजू पाकिस्तान को फर्जी मुल्क मानते हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि अंग्रेजों की बांटो और राज करो की नीति से जन्मा पाकिस्तान आखिर किसका मुल्क है? इस दौरान उन्होंने सांप्रदायिकता के लिए इतिहासकारों को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि गलत इतिहास पेश किए जाने से देश में 80 फीसद हिन्दू और मुसलमान सांप्रदायिक बने, जोकि 1857 तक धर्मनिरपेक्ष थे। दरअसल अंग्रेजों ने इतिहास में वही लिखा, जिससे भारत के हिन्दू-मुसलमान लड़ें। उन बातों का जिक्र इतिहास में दर्ज नहीं किया, जिससे देश में सौहार्द का माहौल बनता। 
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के केनेडी ऑडिटोरियम में प्रोग्रेसिव राइटर्स एसोसिएशन की 'देश में सांप्रदायिकता की समस्या' विषयक संगोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता जस्टिस काटजू ने कहा कि इतिहास की किताबों में बताया जाता है कि शासक महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर तोड़ा, लेकिन उनकी पीढ़ी ने धर्मनिरपेक्ष होकर मंदिर बनाने को जमीन दान दी, इसका जिक्र इतिहास में नहीं है। नवाब अवध होली खेलते थे और ईद में उनके यहां हिन्दू जाया करते थे। यह भी इतिहास की किताबों से नदारद है। यह भी कभी बताने की कोशिश नहीं हुई कि टीपू सुल्तान 156 मंदिरों को सालाना अनुदान दिया करते थे। अप्रत्यक्ष तौर पर उन्होंने एएमयू के विख्यात इतिहासकार प्रोफेसर एमरेटस इरफान हबीब को भी कटघरे में खड़ा कर दिया। कहा कि, एएमयू में बहुत प्रसिद्ध इतिहासकार हैं, उन्होंने अपना काम ठीक से नहीं किया। अगर किया होता तो ये तथ्य भी इतिहास की किताबों में शामिल होते।
काटजू ने कहा 'देश में असली भारतीय तो सिर्फ 7 से 8 फीसद हैं, जो ट्राइबल हैं और जंगलों में रहते हैं। उन्हें बेदखल किया जा रहा है। देश पर हम-आप का कब्जा है। हम सही मायनों में भारतीय नहीं है।' काटजू ने कहा कि भारत में 90 फीसद से ज्यादा लोग अप्रवासी हैं। उत्तरी अमेरिका की तरह, क्योंकि यहां अमन था। इसलिए यहां कई धर्म, जाति, भोजन, पहनावा और भाषाएं हैं।
 पुलिस की कार्रवाई पर भी काटजू ने टिप्पणी की, कहा कि देश की पुलिस साइंटिफिक जांच नहीं करती। न तो उसे ऐसी जांच की ट्रेनिंग ही दी जाती है। तभी तो कई घटनाओं में बेकसूर पकड़ लिए जाते हैं। फिर सालों ट्रायल के दौरान जेल में ही उनकी जिंदगी कट जाती है।

Posted by Creative Dude on 9:26 PM. Filed under . You can follow any responses to this entry through the RSS 2.0

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