भारतीय मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक को बड़ा अवार्ड

भारतीय मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक को बड़ा अवार्ड वाशिंगटन : अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने आईबीएम के एक जाने माने खोजकर्ता और भारतीय मूल के अमेरिकी रंगास्वामी श्रीनिवासन को प्रतिष्ठित नेशनल मेडल ऑफ टेक्नोलॉजी फॉर इनोवेशन के लिए नामित किया है। श्रीनिवासन के साथ ओबामा ने 12 अन्य शोधकर्ताओं को इस नेशनल मेडल ऑफ साइंस के लिए और 10 असाधारण खोजकर्ताओं को नेशनल मेडल ऑफ टेक्नोलॉजी एंड इनोवेशन के लिए नामित किया है। ये पुरस्कार अमेरिकी सरकार की ओर से वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और खोजकर्ताओं को दिए जाने वाले सर्वोच्च पुरस्कार हैं।

इन विजेताओं को वर्ष 2013 की शुरुआत में व्हाइट हाउस में आयोजित एक समारोह के दौरान पुरस्कार प्रदान किया जाएगा। वर्ष 1981 में श्रीनिवासन ने खोज की थी कि एक पराबैंगनी एक्साइमर लेजर एक जीवित उतक को बिना किसी उष्मीय नुकसान के बारीकी से उकेर सकता है। इस सिद्धांत को उन्होंने ‘एब्लेटिव फोटो डीकंपोजीशन’ का नाम दिया था। ओबामा ने कहा, ‘इन प्रेरक अमेरिकी खोजकर्ताओं को सम्मानित करते हुए मैं गर्व महसूस कर रहा हूं।’

अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा, ‘इन लोगों ने इस देश को महान बनाने के लिए बहुत समझदारी और कल्पनाशीलता का प्रदर्शन किया है। ये हमें याद दिलाते हैं कि रचनात्मक गुणों को अगर एक बेहतर माहौल मिले तो वे कितना अच्छा प्रभाव पैदा कर सकते हैं।’ नेशनल मेडल ऑफ टेक्नोलॉजी एंड इनोवेशन की स्थापना वर्ष 1980 में की गई थी। यह पुरस्कार उन लोगों को दिया जाता है जिन्होंने अमेरिका की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता बढ़ाने, देश का तकनीकी कार्यबल मजबूत करने और जीवन की गुणवत्ता सुधारने में अपना अभूतपूर्व योगदान दिया हो।

नेशनल मेडल ऑफ साइंस की स्थापना वर्ष 1959 में की गई थी और व्हाइट हाउस के लिए इसकी व्यवस्था का जिम्मा नेशनल साइंस फाउंडेशन के हाथ में है। वर्ष में एक बार दिए जाने वाले ये पुरस्कार विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में अद्भुत प्रदर्शन करने वाले लोगों को एक खास पहचान देते हैं। अमेरिका के ‘इंवेंटर हॉल ऑफ फेम’ में वर्ष 2002 से शामिल श्रीनिवासन आईबीएम के टी जे वाटसन अनुसंधान केंद्र में 30 साल तक काम कर चुके हैं। अपने नाम 21 अमेरिकी पेटेंट दर्ज कराने वाले श्रीनिवासन मद्रास विश्वविद्यालय से स्नातक और परास्नातक की डिग्री ले चुके हैं। भौतिक रसायन में उन्होंने वर्ष 1956 में सदर्न कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट किया था।

हॉल ऑफ फेम की वेबसाइट पर उनके बारे में दी गयी जानकारी के अनुसार, श्रीनिवासन और उनके साथी खोजकर्ताओं ने एक्साइमर लेजर और एक पारंपरिक हरित लेजर की मदद से कार्बनिक पदार्थ को उकेरने के लिए कई परीक्षण किए थे। उन्होंने पाया था कि हरित लेजर से किए गए कटाव उष्मा के प्रभाव के चलते खराब हो गए थे जबकि एक्साइमर लेजर ने काफी साफ-सुथरे कटाव बनाए थे।

वर्ष 1983 में श्रीनिवासन ने आंखों के एक सर्जन के साथ मिलकर एपीडी का विकास किया था जो आंख के सफेद भाग में महीन कटाव लाने के लिए प्रयोग होता है। इसके परिणामस्वरूप आज दृष्टिदोष को सही करने के लिए लेजिक सर्जरी मौजूद है। लेजिक सर्जरी के आने के बाद से लाखों लोगों ने इस क्रियाविधि का फायदा लिया है जो लेंस पर आपकी निर्भरता को बहुत हद तक कम कर देता है।

Posted by Creative Dude on 5:52 AM. Filed under . You can follow any responses to this entry through the RSS 2.0

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