पुरुषत्व के झूठे पुलिंदो---पूर्णिमा शर्मा
Literature 7:15 AM
पूर्णिमा शर्मा
देह के भूखे दरिंदो,पुरुषत्व के झूठे पुलिंदो !!!!!
देह के भूखे दरिंदो,पुरुषत्व के झूठे पुलिंदो !!!!!
क्या काफी होगी तुम्हे सजा फांसी की?
या की मोर्चरी में बंद कर दिया जाए,महिला-लाशों के साथ।
की--
करो ,और कुकृत्य करो इनके साथ भी।
क्या कभी ख़त्म होगी तुम्हारी वासना की प्यास भी?
एक बात पूंछू तुमसे,
सब कुछ जान कर,पिता ने गले से लगाया तुम्हे?
"शाबाश बेटा",नाम रोशन कर आया।
या माँ ने कहा "धन्य मेरी कोख,जिसमें तू जन्मा"
या कि "इस से तो अच्छा था कि मैं बाँझ होती"
या कि "यही दिन दिखाने को मन्नत मांग तुझे पैदा किया था"
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कितनी भी थू-थू ,धिक्कार काफी नहीं तेरे लिए तो।
सिर्फ एक बार---
अपनी बहन को उन्ही निगाहों से तो देखना तू
बता "कैसा लगता है"?
का-पुरुष -------------
कल तेरी भी गर बेटी होगी
और वह भी ऐसे ही नौची- खासौटी जायेगी जो,
सिर्फ एक बार कल्पना करके तो देखना ,
और प्लीज़ मुझे बताना कि ----
कैसा लगता है ?
Posted by Creative Dude
on 7:15 AM.
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